Somvar Vrat Katha । सोमवार व्रत कथा । भगवान शिव की कृपा प्राप्ति हेतु पढ़ी जाने वाली कथा ।

सोमवार व्रत विधि संक्षेप में:

  1. प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित करें।
  3. “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
  4. व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  5. दिन भर व्रत रखें (निर्जल या फलाहार)।
  6. शाम को पुनः शिवजी की पूजा करें।
  7. व्रत का फल भगवान शिव को समर्पित कर प्रसाद लें।

सोमवार व्रत की कथा:

बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक धनी साहूकार रहता था। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, परंतु वह संतान सुख से वंचित था। संतान की प्राप्ति के लिए साहूकार और उसकी पत्नी अत्यंत व्याकुल रहते। अंततः उन्होंने भगवान शिव की शरण ली और प्रत्‍येक सोमवार को व्रत रखकर श्रद्धापूर्वक शिवजी और माता पार्वती की पूजा करने लगे।

उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से निवेदन किया,

“प्रभु! इस दंपत्ति की मनोकामना पूर्ण कीजिए। ये बड़ी श्रद्धा और विश्वास से आपकी पूजा करते हैं।”

भगवान शिव ने मुस्कराकर उत्तर दिया,

“हे देवी! इस संसार में प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है। परंतु तुम्हारे आग्रह और इनकी भक्ति को देखते हुए मैं इन्हें संतान का वरदान देता हूँ। परंतु ध्यान रहे, यह पुत्र केवल बारह वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।”

माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था, इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख।। उसने पहले की भाँति ही भगवान शिव की भक्ति और सोमवार व्रत जारी रखा।

कुछ समय पश्चात उसके घर एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया। समय बीतता गया और जब बालक ग्यारह वर्ष का हुआ, तो साहूकार ने उसे काशी विद्या प्राप्ति के लिए भेजने का निश्चय किया। उसने पुत्र के मामा को बुलाकर बहुत सारा धन और आवश्यक सामग्री देकर कहा,

“इसे काशी ले जाओ, रास्ते में यज्ञ कराना, ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देना, और पुण्य कार्य करते जाना।”

मामा-भांजा पुण्य यात्रा करते हुए एक नगर में पहुँचे, जहाँ उस दिन वहां के राजा की पुत्री का विवाह होना था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने इस दोष को छुपाने हेतु यह योजना बनाई कि साहूकार के सुंदर पुत्र को ही दूल्हा बनाकर विवाह करा दिया जाए और बाद में कन्या को राजकुमार के साथ विदा कर दिया जाए।

विवाह हो गया, लेकिन साहूकार का पुत्र सत्यनिष्ठ था। उसने चुपचाप कन्या की चुनरी पर लिख दिया:

“तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।”

राजकुमारी ने यह वाक्य पढ़ा और अपने माता-पिता को बताया। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई।

इधर बालक और उसका मामा काशी पहुंचे, यज्ञ कराते रहे। और जिस दिन बालक की बारहवीं वर्षगांठ थी, उस दिन भी यज्ञ किया जा रहा था। बालक ने मामा से कहा,

“मामा जी, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, मैं भीतर जाकर विश्राम करता हूँ।”

और जैसे ही वह भीतर गया, भगवान शिव के वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु हो गई।

मामा शोक में विलाप करने लगे। उसी समय संयोगवश भगवान शिव और माता पार्वती उस मार्ग से गुजर रहे थे। माता पार्वती ने करुण स्वर में कहा:

“स्वामी! इस मामा के विलाप से मेरा हृदय द्रवित हो उठा है। कृपया इसके कष्ट का निवारण करें।”

भगवान शिव ने बालक के समीप जाकर देखा और कहा,

“यह वही साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने बारह वर्ष की आयु दी थी। इसका समय पूर्ण हो गया है।”

पर माता पार्वती ने पुनः करुणावश निवेदन किया:

“हे महादेव! इसकी भक्ति और इसकी माता-पिता की श्रद्धा को देखकर कृपा कीजिए अन्यथा इसके माता-पिता भी शोक में प्राण त्याग देंगे।”

भगवान शिव, जो कि आशुतोष हैं, पार्वती जी के आग्रह से प्रसन्न होकर बोले:

“हे देवी! मैं इस बालक को दीर्घायु प्रदान करता हूँ।”

फिर क्या था! बालक पुनः जीवित हो गया। शिक्षा पूर्ण कर वह मामा के साथ घर लौट पड़ा। मार्ग में जब वे उस नगर में पहुँचे, जहाँ विवाह हुआ था, तो राजा ने उसे पहचान लिया और आदरपूर्वक अपनी पुत्री को विधिवत विदा किया।

घर लौटने पर साहूकार और उसकी पत्नी ने जब अपने पुत्र को जीवित देखा, तो वह बेहद प्रसन्न हुए।

रात्रि में भगवान शिव ने साहूकार को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा:

“हे श्रेष्ठी! तेरी सोमवार व्रत की श्रद्धा और व्रत-कथा के श्रवण से प्रसन्न होकर मैंने तेरे पुत्र को दीर्घायु प्रदान की है। जो भी श्रद्धा और नियम से सोमवार का व्रत करता है और यह कथा सुनता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी संकट दूर होते हैं।”


कथा का संदेश:

इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान शिव भक्तों के कष्टों को हरने वाले हैं। सच्ची श्रद्धा, नियमपूर्वक व्रत, और पवित्र मन से कथा श्रवण करने पर भगवान शिव समस्त मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं।

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